इस दौर में कई प्रभावशाली समाचार पत्र उभरकर आए, जिनका संचालन प्रतिष्ठित और निडर पत्रकारों ने किया। जी. सुब्रमण्यम अय्यर के संपादन में "द हिंदू" और "स्वदेशमित्रन", बी.जी. तिलक के संपादन में "केसरी" और "मराठा", सुरेंद्रनाथ बनर्जी के संपादन में "बंगाली", शिशिर कुमार घोष और मोतीलाल घोष के संपादन में "अमृत बाजार पत्रिका", गोपाल गणेश आगरकर के संपादन में "सुधारक", एन.एन. सेन के संपादन में "इंडियन मिरर", दादाभाई नौरोजी के संपादन में "वॉयस ऑफ इंडिया", जी.पी. वर्मा के संपादन में "हिंदुस्तानी" और "एडवोकेट", पंजाब में "ट्रिब्यून" और "अख़बार-ए-आम", बॉम्बे में "इंदु प्रकाश", "ज्ञान प्रकाश", "काल" और "गुजराती" तथा बंगाल में "सोमप्रकाश", "बंगनिवासी" और "साधारणी" प्रमुख थे। वास्तव में, भारत में ऐसा कोई बड़ा राजनीतिक नेता नहीं था, जिसके पास अपना समाचार पत्र न हो या जो किसी न किसी रूप में लेखन से न जुड़ा हो।
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