1918 के मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार और 1919 के भारत सरकार अधिनियम में 10 साल बाद समीक्षा का प्रावधान था। इसी के तहत 1928 में सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में साइमन कमीशन गठित किया गया। इसमें ब्रिटेन की संसद के सात सदस्य थे, जिनमें लेबर पार्टी के नेता क्लेमेंट एटली (1883-1967) भी शामिल थे, जो बाद में 1945 से 1951 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। कमीशन का कार्य भारत की संवैधानिक प्रगति की रिपोर्ट तैयार करना और आगे के सुधारों का सुझाव देना था। भारत के संवैधानिक भविष्य पर निर्णय लेने वाले इस कमीशन में किसी भी भारतीय को शामिल न करने के कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने दिसंबर 1927 में मद्रास अधिवेशन में इसे बहिष्कृत करने का निर्णय लिया। जब 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन बॉम्बे पहुंचा तो इसका स्वागत हड़तालों, विरोध प्रदर्शनों और काले झंडों से किया गया। जिस भी प्रमुख शहर में यह कमीशन गया, वहां "साइमन गो बैक" के नारों के साथ विरोध प्रदर्शन हुए। हालांकि, मुस्लिम लीग के एक गुट, हिंदुओं और सिखों ने कमीशन का सहयोग किया। साइमन कमीशन के साथ सहयोग के लिए एक अखिल भारतीय समिति भी बनाई गई।
मई 1930 में प्रकाशित कमीशन की दो-खंडों वाली रिपोर्ट में प्रांतीय स्तर पर द्वैध शासन समाप्त करने और प्रतिनिधि सरकार की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया। इसमें हिंदू-मुस्लिम तनाव समाप्त होने तक अलग सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली बना
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