मुहम्मद अली जिन्ना
जिन्ना ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत हिंदू और मुस्लिम भारतीयों के बीच एकता स्थापित करने के दृढ़ संकल्प के साथ की थी। अपने करियर के पहले 10 वर्षों (1906 से 1919) के अंत में, उनके इस प्रयास के कारण सरोजिनी नायडू ने उन्हें 'हिंदू-मुस्लिम एकता का राजदूत' कहा। नायडू ने 1918 में जिन्ना के भाषणों और लेखनों को संकलित किया और इस संकलन को 'एकता का राजदूत' उपशीर्षक दिया। उन्होंने लिखा कि जिन्ना "हिंदू-मुस्लिम एकता के साकार प्रतीक" के रूप में खड़े थे।
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