सितंबर 1923 में सरकार ने बोरसद तालुका के निवासियों पर 2.5 लाख रुपये का कर लगाया, जिसे वहां तैनात विशेष डकैती विरोधी पुलिस के खर्च के रूप में वसूला जाना था। 16 वर्ष से अधिक उम्र के प्रत्येक व्यक्ति को इस राशि में दो रुपये सात आना देना था। सरदार पटेल और उनके सहयोगियों ने पुलिस और डकैतों की मिलीभगत के सबूत उजागर किए। जिन ग्रामीणों ने डकैतों का विरोध किया या पुलिस को सूचना दी, उन्हें कठोर प्रताड़ना झेलनी पड़ी। सरदार पटेल और उनकी टीम ने इस कर के खिलाफ ग्रामीणों को संगठित किया। लंबे संघर्ष के बाद, जिसे सरदार पटेल ने कुशलता से संचालित किया, सरकार को झुकना पड़ा।
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