मई 1930 में साइमन कमीशन की सिफारिशों के आधार पर 1930 से 1932 के बीच ब्रिटिश सरकार ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए। पहला गोलमेज सम्मेलन 12 नवंबर 1930 को लंदन में शुरू हुआ। इसमें 3 ब्रिटिश राजनीतिक दलों के 16 प्रतिनिधि, रियासतों के 16 प्रतिनिधि और 57 भारतीय शामिल थे। भारतीय प्रतिनिधियों में मुस्लिम लीग से आगा खान III, हिंदू महासभा से बीएस मुञ्जे और एमआर जयकर, इंडियन लिबरल पार्टी से तेज बहादुर सप्रू, सीवाई चिंतामणि और श्रीनिवास शास्त्री, सिखों की ओर से सरदार उज्जल सिंह और दलित वर्गों की ओर से डॉ. बीआर अंबेडकर शामिल थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था क्योंकि इसके कई नेता नमक सत्याग्रह के कारण जेल में थे। सम्मेलन में संघीय ढांचे, प्रांतीय संविधान, अल्पसंख्यक, रक्षा, बर्मा, NWFP और सिंध से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई। मुस्लिम लीग हमेशा मजबूत केंद्र के विरोध में थी, इसलिए एक अखिल भारतीय संघ का विचार स्वीकार किया गया। डॉ. बीआर अंबेडकर द्वारा दलित वर्गों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की मांग पर भी विचार हुआ। हालांकि, कांग्रेस की अनुपस्थिति के कारण कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी। यह सम्मेलन 19 जनवरी 1931 को समाप्त हुआ।
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