बारा बलुतेदार प्रणाली, जिसे बारह बलुतेदार प्रणाली के नाम से भी जाना जाता है, मध्यकालीन महाराष्ट्र के गांवों में प्रचलित एक पैतृक प्रणाली थी। बलुतेदारों को गांव की उपज के माध्यम से वस्तु विनिमय प्रणाली द्वारा भुगतान किया जाता था। इस प्रणाली में सुनार, मंदिर सेवक, नाई, धोबी, कुम्हार, बढ़ई, लोहार, मोची, पशु आभूषण निर्माता, पानी लाने वाले, चौगुला और मांग जैसे समूह शामिल थे। यह उस समय के उत्तर भारत के जजमानी प्रणाली से समानता रखती थी। वर्ष 1958 में एक अधिनियम पारित हुआ जिसने गांव के सेवकों को इस कार्य से मुक्त कर दिया।
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