भक्ति संत मीराबाई रैदास की शिष्या बनी थीं, जो उस समय अछूत माने जाने वाले समाज से आते थे। मीराबाई एक राजपूत राजकुमारी थीं, जिनका विवाह मेवाड़ के शाही परिवार में हुआ था। उन्हें महल का जीवन पसंद नहीं था, इसलिए उन्होंने महल छोड़ दिया। उन्होंने अपना जीवन भगवान कृष्ण को समर्पित कर दिया और अपनी भक्ति व्यक्त करने के लिए कई भजन रचे।
मीराबाई का जन्म 1498 में मेड़ता के चौकरी गांव में हुआ था। उनके पिता मेड़ता के शासक राणा रतन सिंह थे।
मीराबाई के भजनों का संकलन 'पदावली' कहलाता है। उन्होंने अपनी रचनाएँ ब्रज भाषा में लिखीं, जो वृंदावन और उसके आसपास बोली जाती है।
ऐसा माना जाता है कि मीराबाई द्वारका में कृष्ण मंदिर में लीन हो गईं और अपने आराध्य में विलीन हो गईं।
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