धम्मचक्कपवत्तन सुत्त
बुद्ध ने पांच भिक्षुओं को जो पहला उपदेश दिया वह धम्मचक्कपवत्तन सुत्त कहलाया। इसे धर्मचक्र प्रवर्तन के रूप में भी जाना जाता है। इसमें बुद्ध ने चार आर्य सत्य और अष्टांगिक मार्ग का वर्णन किया। यह उपदेश आषाढ़ पूर्णिमा के दिन दिया गया था। इसके बाद बुद्ध ने सारनाथ में मूलगंधकुटी में अपना पहला वर्षावास भी बिताया। अपने पहले उपदेश में बुद्ध ने कहा, "मैं केवल एक ही चीज सिखाता हूं: दुख और दुख का अंत," जो बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है।
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