अपने अखबार 'केसरी' के माध्यम से तिलक ने क्रांतिकारियों खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी का बचाव किया और तत्काल स्वराज की मांग की। सरकार ने उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया। तिलक को 6 साल (1908-14) के लिए बर्मा की मांडले जेल में सजा सुनाई गई। मोहम्मद अली जिन्ना उनके वकील थे। जिन्ना यह केस हार गए लेकिन 1916 में जब तिलक पर फिर देशद्रोह का आरोप लगा तो उन्होंने सफलतापूर्वक उनका बचाव किया। जेल में रहते हुए तिलक ने 'गीता रहस्य' लिखा। यह पुस्तक बहुत लोकप्रिय हुई और इसकी बिक्री से मिली राशि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दान कर दी गई। हालांकि, मांडले जेल का कठिन जीवन तिलक के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाला।
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