1815 में राजा राम मोहन राय ने बंगाल में सामाजिक और धार्मिक सुधारों की अग्रदूत आत्मीय सभा की स्थापना की थी। हिंदू शास्त्रों के एकेश्वरवादी सिद्धांत के प्रचार के लिए उन्होंने 1815 से 1819 के बीच आत्मीय सभा की स्थापना की। इसका मुख्य उद्देश्य एकेश्वरवादी हिंदू वेदांतवाद और इसी तरह के विषयों पर चर्चा और वाद-विवाद सत्र आयोजित करना था। 1828 में उन्होंने ब्रह्म सभा की स्थापना की, जो बाद में ब्रह्म समाज के रूप में विकसित हुई।
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