राजशेखर 10वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संस्कृत कवि, नाटककार और आलोचक थे और गुर्जर प्रतिहार राजाओं के दरबारी कवि थे। उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्य 'काव्यमीमांसा' और 'कर्पूरमंजरी' हैं। उन्होंने 'कर्पूरमंजरी' अपनी पत्नी अवंतिसुंदरी को प्रसन्न करने के लिए लिखी थी। 'कर्पूरमंजरी' शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई है। अपने नाटकों में, राजशेखर ने खुद को गुर्जर प्रतिहार राजा महेंद्रपाल प्रथम का गुरु बताया है।
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