विकासवादी जीवविज्ञानियों के अनुसार अक्ल दाढ़ एक अवशेषी अंग है, जो विकास की प्रक्रिया में अब निष्क्रिय हो चुका है। उनका मानना है कि अक्ल दाढ़ या तीसरे दाढ़ के सेट हमारे पूर्वजों के कठोर आहार, जैसे पत्तियां, जड़ें, मेवे और मांस चबाने के लिए विकसित हुए थे। इस तरह के आहार से दांत जल्दी घिस जाते थे, इसलिए अतिरिक्त चबाने की शक्ति की जरूरत पड़ती थी। आधुनिक आहार में नरम भोजन होने के कारण अब अक्ल दाढ़ की आवश्यकता नहीं रह गई है।
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