लैप्स सिद्धांत के तहत अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल नहीं किया जा सकता था क्योंकि तत्कालीन नवाब वाजिद अली शाह के कई उत्तराधिकारी थे। 7 फरवरी 1856 को अवध को औपचारिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया, जब वाजिद अली शाह ने प्रशासन ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंपने वाले समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इस कदम से लॉर्ड डलहौजी ने अवध पर ब्रिटिश आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण को अंतिम रूप दिया, जो बक्सर की लड़ाई के साथ शुरू हुआ था। उन्होंने इसे "शासितों के हित" में मिलाने का दावा किया और नवाब पर कुशासन व प्रशासनिक विफलता का आरोप लगाया। नोट: अवध के नवाब सआदत अली को 10 नवंबर 1801 को सहायक संधि स्वीकार करनी पड़ी थी।
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