मुजफ्फरपुर बमकांड के बाद प्रफुल्ल चाकी ने आत्महत्या कर ली और खुदीराम बोस को फांसी दी गई। बी. जी. तिलक ने क्रांतिकारियों का समर्थन किया और अपने पत्र 'केसरी' के माध्यम से तत्काल स्वराज की मांग की। इसके कारण उन पर राजद्रोह का आरोप लगा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। न्यायाधीश दिनशॉ डी. दावर ने उन्हें 1908 से 1914 तक बर्मा के मांडले में छह साल की सजा सुनाई।
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