उन्होंने दिल्ली के प्रमुख वकील और कांग्रेस नेता आसफ अली से विवाह किया। युवावस्था में वे कांग्रेस समाजवादियों के प्रभाव में आईं और कट्टर राष्ट्रवादी बन गईं। 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन और 1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह के दौरान उन्हें गिरफ्तार किया गया। 1942 से 1946 तक उन्होंने भूमिगत रहकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता के बाद वे वामपंथी समाजवादी समूह से जुड़ गईं, जो 1955 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया। वे इंडो-सोवियत सांस्कृतिक समाज, ऑल इंडिया पीस काउंसिल और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन की प्रमुख सदस्य थीं। उन्हें "स्वतंत्रता आंदोलन की महान वृद्ध महिला" और "भारत छोड़ो आंदोलन की रानी" के रूप में जाना जाता है। ध्यान दें कि मतंगिनी हाजरा को "गांधी बुरी" कहा जाता था, जिसका अर्थ है वृद्ध गांधी महिला।
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