सहायक संधि का सिद्धांत लॉर्ड वेलेजली ने शुरू किया था, जो 1798 से 1805 तक भारत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल थे। 1798 में हैदराबाद के निजाम ने इस संधि को स्वीकार करने वाला पहला शासक बना। मैसूर के टीपू सुल्तान ने इसे मानने से इनकार कर दिया, लेकिन चौथे आंग्ल-मैसूर युद्ध में ब्रिटिश जीत के बाद 1799 में मैसूर को सहायक राज्य बनना पड़ा। 1801 में अवध के नवाब ने भी इस संधि को स्वीकार कर लिया।
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