निकोलस लियोनार्ड सादी कार्नो फ्रांसीसी सेना में एक यांत्रिक इंजीनियर, सैन्य वैज्ञानिक और भौतिकविद थे। उन्हें अक्सर "ऊष्मागतिकी के जनक" के रूप में जाना जाता है। कोपरनिकस की तरह उन्होंने केवल एक पुस्तक प्रकाशित की थी, "रिफ्लेक्शंस ऑन द मोटिव पावर ऑफ फायर" (पेरिस, 1824)। इस पुस्तक में उन्होंने 27 वर्ष की आयु में ऊष्मा इंजनों की अधिकतम दक्षता का पहला सफल सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसी कार्य के माध्यम से उन्होंने ऊष्मागतिकी नामक एक नई शाखा की नींव रखी। उनके शोध कार्य को उनके जीवनकाल में अधिक मान्यता नहीं मिली, लेकिन बाद में रुडोल्फ क्लॉसियस और लॉर्ड केल्विन ने इसे ऊष्मागतिकी के दूसरे नियम को औपचारिक रूप देने और एंट्रॉपी की अवधारणा को परिभाषित करने के लिए उपयोग किया।
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