वाराणसी की सांस्कृतिक और शिल्प विरासत को राष्ट्रीय मान्यता मिली जब बनारसी शहनाई और बनारसी तबला को भौगोलिक संकेत (GI) टैग दिया गया। बनारसी शहनाई एक पारंपरिक वाद्य यंत्र है जो भारतीय शास्त्रीय संगीत के बनारस घराने से जुड़ा है। इसे राष्ट्रीय प्रसिद्धि उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के माध्यम से मिली जिन्होंने इसे भारत के पहले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले में बजाया था। शहनाई को पवित्र माना जाता है और यह आमतौर पर शादियों, धार्मिक आयोजनों और मंदिर की रस्मों में इस्तेमाल होती है। यह वाराणसी की आध्यात्मिक और कलात्मक परंपराओं को दर्शाती है और शहर की अनोखी सांस्कृतिक पहचान में योगदान करती है।
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