भूमि राजस्व संग्रहण का ठेका
मध्यकालीन राज्यों के लिए भूमि राजस्व आय का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत था, लेकिन इसका संग्रह एक बड़ी चुनौती थी। इसलिए, विभिन्न राज्यों ने अलग-अलग समाधान अपनाए। इन्हीं में से एक था इजारादारी या इजारा, जिसके तहत राजस्व संग्रहण का ठेका निजी पक्षों को दिया जाता था। ये ठेकेदार स्थानीय जमींदारों से भूमि राजस्व एकत्रित करते थे और बदले में शाही कोष को एकमुश्त राशि देने का वादा करते थे। हालांकि, यह प्रणाली अत्यधिक भ्रष्ट थी। भूमि राजस्व का प्रत्यक्ष आकलन और संग्रह अधिक प्रभावी था। उदाहरण के लिए, मलिक अंबर ने पुराने इजारा प्रणाली को समाप्त कर जब्ती प्रणाली अपनाई।
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