भास्कर प्रथम

भास्कर प्रथम का जीवनकाल 552 ईस्वी से 628 ईस्वी तक रहा। वे उन खगोलविदों में से एक है, जो भारत के दक्षिणी हिस्से से संबंधित थे। भास्कर देश के चारों ओर दिखाई देने वाली रेखाओं में देशांतरों और अक्षांशों का पता लगाने में अपने अग्रणी योगदान दिया था। भास्कर I को हिंदू खगोल विज्ञान पर उनकी तीन पुस्तकों या संस्करणों के लिए जाना जाता है, जिन्हें महाभास्कराय (भास्कर का महान ग्रंथ), लगुभास्कराय (भास्कर और आर्यभट्टीय भाष्य पर टीका शामिल है। भास्कर की पुस्तक ‘महाभास्कराय’ उनकी मुख्य पुस्तक है। इस महाभाष्य में आर्यभट्ट के तीन खगोलीय अध्यायों का एक विस्तृत संस्करण है, जिसे आठ अध्यायों के भीतर व्यवस्थित किया गया है, जिसमें ग्रहों के अनिश्चित देशांतर और अनिश्चित विश्लेषण शामिल हैं इसमें देशांतर सुधार; समय, स्थान और दिशा, गोलाकार त्रिकोणमिति; सितारों के अक्षांश और देशांतर; ग्रहों की गति; सौर और चंद्र ग्रहण, खगोलीय स्थिरांक; और तिथि और विविध उदाहरण हैं। इसके अलावा उनकी अन्य पुस्तक लघुभास्कराय है, जो उनकी पहली पुस्तक का लघु संस्कारण है।
भास्कर का शायद सबसे महत्वपूर्ण गणितीय योगदान एक स्थिति प्रणाली में संख्याओं के प्रतिनिधित्व है। भास्कर से पहले की ये संख्याएँ आंकड़ों में नहीं बल्कि शब्दों या रूपकों में लिखी गई थीं और छंदों में व्यवस्थित थीं।

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