भारत सरकार ने जारी की ड्राफ्ट आर्कटिक नीति
भारत सरकार ने हाल ही में ड्राफ्ट आर्कटिक नीति जारी की।
नीति का मुख्य उद्देश्य
नीति यह सुनिश्चित करती है कि आर्कटिक संसाधनों का पता लगाया जाए और उनका उपयोग किया जाए। इस नीति के तहत, भारत यह सुनिश्चित करेगा कि यह आर्कटिक परिषद के नियमों और विनियमों का पालन करता है। भारत 2013 में आर्कटिक परिषद का पर्यवेक्षक बना था और एक पर्यवेक्षक के रूप में इसकी सदस्यता 2018 में अगले पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत की गई।
आर्कटिक नीति के पांच मुख्य स्तंभ
आर्कटिक नीति के मुख्य पांच स्तंभ इस प्रकार हैं:
- विज्ञान और अनुसंधान
- आर्थिक और मानव विकास
- परिवहन और कनेक्टिविटी
- राष्ट्रीय क्षमता निर्माण
- शासन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत संचालित होने वाला नेशनल सेंटर फॉर पोलर एंड ओशन रिसर्च आर्कटिक पॉलिसी को लागू करने में नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा।
आर्कटिक नीति भारत और आर्कटिक क्षेत्र को कैसे जोड़ती है?
इस नीति में आर्कटिक निवासियों, विशेष रूप से स्वदेशी समुदायों को हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से जोड़ने की परिकल्पना की गई है। इस नीति का उद्देश्य ऐसे अवसरों का निर्माण करना है जहां भारतीय उद्यम अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य व्यवसायों का हिस्सा बन सकें और पारंपरिक स्वदेशी ज्ञान को बढ़ावा दे सकें।
भारत और आर्कटिक अनुसंधान
- भारत ने पेरिस में स्वालबार्ड संधि (Svalbard Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे। इससंधि ने सैन्यीकरण नहीं करने की प्रतिबद्धता के साथ आर्कटिक क्षेत्र में मुक्त पहुंच की अनुमति प्रदान की है।
- भारत ने 2007 में आर्कटिक के लिए अपना पहला वैज्ञानिक अभियान लांच किया था।
- 2008 में, भारत ने नॉर्वे के स्वालबार्ड में हिमाद्री नामक एक बेस स्थापित किया था।
- 2014 में, भारत ने IndArc को तैनात किया।यह Kong sfjorden में एक मल्टीसेन्सरी ऑब्जर्वेटरी है।
- 2016 में, भारत ने Ny Alesund, Svalbard में Gruvebadet Atmponsheric Laboratry की स्थापना की थी।