भारतीय संस्कृति -8: आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत और वैश्विक प्रभावों का एक अनूठा संगम है। स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने स्थापत्य कला में एक नया युग देखा है, जिसमें परंपरागत तत्वों को आधुनिक तकनीकों और डिज़ाइनों के साथ जोड़ा गया है। यह स्थापत्य कला न केवल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है, बल्कि आर्थिक प्रगति, शहरीकरण और पर्यावरणीय चेतना को भी प्रतिबिंबित करती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत में आधुनिक स्थापत्य कला का प्रारंभ स्वतंत्रता (1947) के बाद हुआ, जब देश ने अपनी पहचान को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश की। जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में, भारत ने आधुनिकीकरण को अपनाया, और नए शहरों व इमारतों के निर्माण में पश्चिमी स्थापत्य शैलियों का प्रभाव देखा गया। इस दौर में, फ्रांसीसी वास्तुकार ले कोर्बुज़िए ने चंडीगढ़ शहर की योजना बनाई, जो आधुनिक भारतीय स्थापत्य का प्रतीक बना। चंडीगढ़ के कैपिटल कॉम्प्लेक्स, जिसमें विधान सभा और उच्च न्यायालय शामिल हैं, कंक्रीट के उपयोग और ज्यामितीय डिज़ाइनों के लिए प्रसिद्ध है। साथ ही, भारतीय वास्तुकार जैसे चार्ल्स कोरिया और बी.वी. दोशी ने परंपरागत भारतीय तत्वों को आधुनिक डिज़ाइनों के साथ जोड़कर एक नई दिशा प्रदान की।

विशेषताएँ और शैलियाँ

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला की प्रमुख विशेषता परंपरा और आधुनिकता का मेल है। भारतीय वास्तुकारों ने प्राचीन वास्तुशास्त्र, जैसे वास्तुशास्त्र, और क्षेत्रीय शैलियों को आधुनिक सामग्री और तकनीकों के साथ संयोजित किया। उदाहरण के लिए, चार्ल्स कोरिया की कांकरिया सेंटर फॉर नॉलेज (अहमदाबाद) में पारंपरिक भारतीय आंगनों और जालियों का उपयोग आधुनिक डिज़ाइन के साथ देखा जा सकता है। कंक्रीट, कांच और स्टील जैसी सामग्रियों का उपयोग बढ़ा, लेकिन स्थानीय सामग्री जैसे पत्थर, ईंट और लकड़ी भी महत्वपूर्ण रहीं। जलवायु के अनुकूल डिज़ाइन, जैसे प्राकृतिक वेंटिलेशन और सौर ऊर्जा का उपयोग, आधुनिक भारतीय इमारतों की विशेषता बन गए। इसके अलावा, क्षेत्रीय विविधता ने स्थापत्य को प्रभावित किया—उदाहरण के लिए, राजस्थान में जैसलमेर के किलों से प्रेरित डिज़ाइन और केरल में लकड़ी के पारंपरिक घर।

प्रमुख वास्तुकार और उनके योगदान

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला में कई वास्तुकारों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। चार्ल्स कोरिया, जिन्हें भारत का सबसे प्रभावशाली वास्तुकार माना जाता है, ने सामाजिक और पर्यावरणीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किए। उनकी परियोजनाएँ, जैसे जेनेसिस सेंटर (पुणे) और ब्रिटिश काउंसिल भवन (दिल्ली), सामुदायिकता और स्थिरता को दर्शाती हैं। बी.वी. दोशी, प्रित्ज़कर पुरस्कार विजेता, ने अहमदाबाद में संगथ कार्यालय और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (बेंगलुरु) जैसी परियोजनाओं में भारतीय संवेदनाओं को आधुनिकता के साथ जोड़ा। लॉरी बेकर, जिन्हें “गरीबों का वास्तुकार” कहा जाता है, ने केरल में कम लागत वाली और पर्यावरण-अनुकूल इमारतें बनाकर स्थापत्य में क्रांति लाई। समकालीन वास्तुकार जैसे रजत रे और संजय पुरी ने नवीन डिज़ाइनों के साथ वैश्विक मंच पर भारत को पहचान दिलाई।

प्रमुख परियोजनाएँ

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला की कई परियोजनाएँ विश्व स्तर पर प्रशंसित हैं। चंडीगढ़ का कैपिटल कॉम्प्लेक्स यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो अपनी अनूठी ज्यामितीय संरचना के लिए जाना जाता है। दिल्ली का लोटस टेंपल (1986), फरीबोर्ज़ साहबा द्वारा डिज़ाइन किया गया, अपने कमल के आकार और समावेशी डिज़ाइन के लिए प्रसिद्ध है। मुंबई में कनकिया डिज़ाइन स्कूल और अहमदाबाद में अमदावाद नी गुफा, बी.वी. दोशी की रचनाएँ, कला और स्थापत्य का मेल दर्शाती हैं। हाल के वर्षों में, नोएडा का इंफोसिस कैंपस और बेंगलुरु का बायोकॉन रिसर्च सेंटर जैसे कॉर्पोरेट भवन स्थिरता और नवाचार को प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा, नई दिल्ली में संसद भवन का नया परिसर (2023) आधुनिक तकनीक और भारतीय प्रतीकों का संगम है।

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला ने पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है। जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण के दबाव के बीच, वास्तुकारों ने हरित भवनों को प्राथमिकता दी। उदाहरण के लिए, दिल्ली का इंडिया हैबिटेट सेंटर और बेंगलुरु का ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल हरित तकनीकों का उपयोग करते हैं। लॉरी बेकर की कम लागत वाली डिज़ाइनों ने ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिए किफायती आवास प्रदान किए। इसके अलावा, सामुदायिक केंद्रों और सार्वजनिक स्थानों, जैसे दिल्ली का हौज़ खास विलेज और मुंबई का बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स, ने सामाजिक एकता को बढ़ावा दिया। हालांकि, अनियोजित शहरीकरण और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की चुनौतियाँ बनी हुई हैं।

वैश्विक प्रभाव और चुनौतियाँ

आधुनिक भारतीय स्थापत्य कला ने वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बनाई है। भारतीय वास्तुकारों की परियोजनाएँ सिंगापुर, दुबई और लंदन जैसे शहरों में देखी जा सकती हैं। साथ ही, भारत में बनाए गए भवन, जैसे गुरुग्राम का साइबर हब, वैश्विक कॉर्पोरेट स्थापत्य के उदाहरण हैं। फिर भी, चुनौतियाँ जैसे ऐतिहासिक संरचनाओं का संरक्षण, शहरी भीड़भाड़ और संसाधनों का अति-उपयोग बने हुए हैं। कई शहरों में पुराने भवनों को ध्वस्त कर आधुनिक इमारतें बनाई जा रही हैं, जिससे सांस्कृतिक पहचान खतरे में है। इसके समाधान के लिए, वास्तुकार और नीति निर्माता सतत विकास और संरक्षण पर जोर दे रहे हैं।

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